SWEET LOVE STORY IN HINDI: पिंकी की प्रेम कहानी: कुछ सच्चा कुछ वाक्या
पांचवी कक्षा में वह झल्ला मुझसे हल्की-फुल्की बातें करने लगा. हालांकि हमारे बीच दोस्ती कर कम्पटीशन ज्यादा था. एक दिन पीयुष जो मनीष का सबसे प्यारा और जिगरी दोस्त था उससे मेरी बहस हो गई. थोड़ी देर में मनीष आया और अपने दोस्त को ले जाने लगा लेकिन पता नहीं क्या हुआ देखते ही देखते उसने मुझे थप्पड़ मार दिया. उसके बाद मेरी दोस्त भारती ने मुझे चुप कराया उस दिन मैंने फैसला किया साले से बात भी नहीं करूंगी लेकिन उस शरीफजादे के इश्क में मैं कब इश्कजादी हो गई पता ही नहीं चला.
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पांचवी के रिजल्ट आए एक बार फिर मैं फर्स्ट और वह थर्ड आया. अभी तक जिस शख्स का नाम मैंने इस आर्टिकल में नहीं लिया वह है गोविंद. गोविंद जो मेरा तथाकथित प्रेमी था. उस लड़के के साथ मेरी दोस्ती को इन लोगों ने प्यार का नाम दे दिया था.
गोविंद और मनीष बहुत अच्छे दोस्त थे. दोनों की दोस्ती देखते ही बनती थी. सीधे-सादे मनीष यूं तो किसी से जल्दी बात नहीं करता था लेकिन उसकी खामोशी को अगर कोई छोड़ सकता था तो वह था गोविंद.
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गोविंद भी मुझे चाहता था लेकिन मैं नहीं पर यह बात सिर्फ मैं ही जानती थी. सब लड़के कहते थे कि मैंने कभी गोविंद को स्कूल में राखी नहीं बांधी पर किसी ने यह भी तो ध्यान नहीं दिया कि मैंने मनीष को भी तो राखी नहीं बांधी थी और मैं ही क्या क्लास की एक दो लड़कियों को छोड़ किसी ने भी उसे राखी नहीं बांधी थी. और यह भी कोई नहीं जानता कि गोविंद को तो मैं घर जाकर राखी बांध कर आती थी पर गोविंदने यह बात किसी को कभी बताई ही नहीं.और गोविंद बताएगा भी क्यूं.. उसे तो फ्री में पब्लिसीटि जो मिल रही थी. क्लास की टॉपर उसकी गर्लफ्रेंड. लेकिन मेरे मन में मनीष था. जब कभी मैं बिमार होती तो एक बजे बालकॉनी में खड़ी होजाती. एक बजे हमारे स्कूल की छुट्टी होती थे और मनीष मेरी कालॉनी से होकर ही घर जाता था. जैसे ही वह मेरे घर के नीचे आता था मैं उससे स्कूल और काम के बारें में पूछ लेती थी. वह शर्माते हुए सब बता देता था. ज्यादा बात नहीं करता था क्यूंकि उसके साथ उसके दोस्त होते थे. पर वह बात मुझसे करने ही आता था. मेरी कालॉनी से ही होकर उसका जाना साफ जाहिर करता था कि वह यूं ही मेरी कालॉनी दर्शन नहीं बस मेरे दर्शन को आता था.
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एक बार वह एक पार्टी में भी मिला लेकिन मम्मी-पापा के सामने हिम्मत नहीं हुई कि उससे बत करूं. अगले दिन क्लास में शायद पहली और आखिरी बार उससे करीब आधा घंटा बात हुई. वैसे तो हमेशा सिर्फ कॉपी लेने देने, मार्क पूछने और काम की बात होती थी उस दिन थोड़ी ज्यादा यहां वहां की बात हुई. एक दिन घूमते-घूमते उसकी कालॉनी में भी गई, वह क्रिकेट खेल रहा था. सोचा बात करू पर बस स्माइल देकर निकल गई, बदले में उसने भी जो स्माइल दी वह आज तक दिल में है.
छठी तक जाते-जाते मेरे पापा ने मेरा एडमिशन नवयुग में कराने का फैसला किया. सातवीं कक्षा में कई बार सोचा उससे अपने दिल की बात बोल दूं लेकिन यह सफल नहीं हो सका.
न्यू इयर पर हम हाथ से कार्ड बनाकर क्लासमेट को देते थे मैंने भी उसके लिए एक कार्ड बनाया पर उसे देने की हिम्मत नहीं हुई. दिवाली में भी ट्राई किया पर सफल नहीं हो सकी. देखते देखते फरवरी आ गया. अब तो यह कहानी खत्म होनी थी.
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फरवरी की हल्की ठंड में सब बच्चे फूटबॉल खेल रहे थे और वह अकेला पता नहीं क्यूं क्लास के पीछे फूलों के पास खड़ा था. मैं उसके पास गई और उसकी तरफ इशारा करते हुए अपनी सहेली भारती से बोली “फूल खिल गए हैं”. पता नहीं इसका उसने क्या मतलब निकाला ना जवाब दिया ना कुछ बस मुड कर चला गया. उसकी आंखे कुछ कहना चाहती थी क्या पता नहीं. आज वह पास नहीं है लेकिन मेरा दिल भी कहां मेरे पास है. यह तो अब भी उसी झल्ले के पास है जिसके इश्क में मैं इश्कजादी हुआ करती थी. यही था मेरा पहला प्यार…………
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