तड़पती जवानीलेखक : ankita rai
नीलिमा नाम है उसका। बहुत ही खूबसूरत जैसे कोई अप्सरा ! शरीर का एक एक अंग जैसे किसी सांचे में ढाला गया हो। जो एक बार देखे तो बस उसी का होकर रह जाए। गोरा-चिट्टा रंग, लम्बा कद, दिल को हिला देने वाली मस्त मस्त चूचियाँ, पतली कमर और फिर शानदार गोल गोल गाण्ड जैसे भगवान ने दो चिकने घड़े लगा दिए हों।
बात तब की है जब मेरी तबादला दिल्ली से करनाल हरियाणा में हो गया। करनाल मेरा दे
नीलिमा नाम है उसका। बहुत ही खूबसूरत जैसे कोई अप्सरा ! शरीर का एक एक अंग जैसे किसी सांचे में ढाला गया हो। जो एक बार देखे तो बस उसी का होकर रह जाए। गोरा-चिट्टा रंग, लम्बा कद, दिल को हिला देने वाली मस्त मस्त चूचियाँ, पतली कमर और फिर शानदार गोल गोल गाण्ड जैसे भगवान ने दो चिकने घड़े लगा दिए हों।
बात तब की है जब मेरी तबादला दिल्ली से करनाल हरियाणा में हो गया। करनाल मेरा दे
खा-भाला शहर था। मेरे कुछ मित्र भी पहले से ही यहाँ रहते थे। मैं कुछ दिन वहाँ गेस्टहाउस में रहा और फिर एक किराए का कमरा ले लिया। आपको बता दूँ करनाल में मेरे भाई की ससुराल भी है। भाभी के घर वालों ने बहुत जोर लगाया कि मैं उनके घर पर रुक जाऊँ पर मुझे यह ठीक नहीं लगा क्योंकि मेरी जॉब घूमने फिरने की थी और फिर मेरा आने-जाने और खाने-पीने का कोई वक्त नहीं था।
आखिर कमरा लेने के बाद जिन्दगी अपनी गति से चलने लगी। जैसे कि आपको पता ही है कि दिल्ली में तो मेरे मज़े थे। मस्त चूत चोदने को मिल रही थी। मज़ा ही मज़ा था। पर जब से करनाल आया था चूत के दर्शन ही नहीं हुए थे। एक बार मेरे एक दोस्त चूत का इंतजाम किया भी पर वो मुझे पसंद नहीं आई क्योंकि रंडी चोदना मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं। अपनी तो सोच है कि शिकार करके खाने में मज़ा ही कुछ और है।
ऐसे ही एक महीने से ज्यादा गुज़र गया। अब मुझ से रहा नहीं जा रहा था और मेरी आँखें अब सिर्फ और सिर्फ चूत की तलाश में रहती। तभी मेरी भाभी अपने मायके में आई तो उसने मुझे भी बुला लिया। मैं जाना तो नहीं चाहता था पर फिर जब उसने ज्यादा जिद की तो मैं शाम को चला गया।
मैंने जाकर घण्टी बजाई तो उस क़यामत ने दरवाज़ा खोला जिसका नाम नीलिमा है। उसको देखा तो मैं देखता ही रह गया। नीलिमा ने मुझे दो बार अंदर आने को कहा पर मैं तो जैसे किसी जादू में बंध गया था बस एकटक उसी को देख रहा था। उसकी मोहक हँसी से मैं जैसे स्वपन से बाहर आया। वो मेरी तरफ देख कर हँस रही थी। मैं झेंप गया। मेरी भी हँसी छूट गई।
मैं पहले भी भाभी के मायके आया था पर मैंने इस क़यामत को पहले कभी नहीं देखा था। वो बिल्कुल अनजान थी मेरे लिए।
वो मुझे बैठा कर अंदर चली गई और मैं बैठा सोचता रहा कि आखिर यह है कौन?
तभी भाभी और उसकी मम्मी आई और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। कुछ देर बाद वो चाय नाश्ता लेकर कर दुबारा आई। जैसे ही मेरी उससे नज़र मिली मेरी हँसी छूट गई तो जवाब में वो भी हल्के से मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद मौका मिलने पर मैंने उसके बारे में भाभी से पूछा तो उसने बताया कि वो उसके चाचा के लड़के की पत्नी है। मैंने तारीफ की और बात आगे चली तो उसने बताया कि वो तनहा है क्योंकि उसका पति करीब एक साल से इटली गया हुआ है और वही काम करता है।
करनाल आने के बाद पहली बार किसी के लिए दिल की धड़कनें तेज हुई थी। भाभी ने मुझे रात को अपने घर पर ही रोक लिया। रात को खाना खाने के बाद सब लोग बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा भी हमारे पास आ कर बैठ गई। फिर जो हँसी मजाक शुरू हुआ तो समय का पता ही नहीं लगा। नीलिमा की खिलखिलाती हँसी हर बार मेरे दिल के तारों को झंझोड़ देती। मन में बार बार उसके पति के लिए गाली निकल रही थी कि इतनी खूबसूरत बीवी को छोड़ कर वो इटली क्या माँ चुदवाने गया है?
जैसे मैं नीलिमा की तरफ आकर्षित हो रहा था तो मुझे वो भी अपनी तरफ आकर्षित होती महसूस हुई क्योंकि अब हमारी नजरें एक दूसरे से बार बार टकरा रही थी, यह मेरे लिए शुभ संकेत था।
रात को बातें करते करते कब सो गए समय का पता ही नहीं चला। सुबह नीलिमा ने ही गर्मागर्म चाय के साथ गुड मोर्निंग बोला। जैसे ही मेरी नज़र नीलिमा से मिली तो उसने भी एक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा। दिल की तड़प अब इतनी बढ़ गई थी कि दिल कर रहा था कि अभी बिस्तर पर खींच लूँ और चोद डालूँ पर अभी आम कच्चा था।
चाय देकर नीलिमा चली गई और मैं दरवाजे की तरफ देखता ही रह गया। जब वो जा रही थी तो मेरी नज़र उसके मटकते कूल्हों और बलखाती कमर से हट ही नहीं पाई।
करीब आधे घंटे के बाद नीलिमा एक बार फिर मेरे कमरे में आई और साफ़ तौलिया देकर बोली- नहा लो, नाश्ता तैयार है।
जब वो कह कर जाने लगी तो मैंने थोड़ा आगे बढ़ने की सोची और नीलिमा की तारीफ करते हुए कह ही दिया- नीलिमा.... तुम बहुत खूबसूरत हो !
नीलिमा एकदम से मेरी तरफ घूमी और अवाक् सी मेरी तरफ देखने लगी और फिर बिना कुछ कहे ही कमरे से चली गई। मैं थोड़ा डर गया पर फिर सोचा कि कोई भी औरत अपनी तारीफ से कभी नाराज नहीं हो सकती।
मैं भी नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और कुछ देर बाद तैयार होकर बाहर आया तो भाभी अपने मम्मी पापा के साथ नाश्ते की मेज पर मेरा इन्तजार कर रही थी। नीलिमा सबको नाश्ता परोस रही थी। मैंने नाश्ते की तारीफ की तो भाभी ने बताया कि नीलिमा ने बनाया है तो मैंने तारीफ में एक दो कशीदे और पढ़ दिए। हर निवाले के साथ वाह वाह किया तो नीलिमा के चेहरे पर भी एक मुस्कराहट तैर गई।
नाश्ता करने के बाद भाभी के मम्मी-पापा चले गए, उनको किसी रिश्तेदारी में जाना था। भाभी को भी उन्होंने इसीलिए बुलाया था ताकि नीलिमा अकेली ना रहे। नीलिमा थी तो भाभी के चाचा के बेटे की बहू पर क्योंकि भाभी के चाचा-चाची भी उसी रिश्तेदारी में गए हुए थे जिसमे भाभी के मम्मी-पापा जा रहे थे तो नीलिमा भाभी के घर पर ही रह रही थी।
भाभी के मम्मी-पापा के जाने के बाद घर में सिर्फ भाभी, नीलिमा और मैं ही रह गए थे। मेरी भी ड्यूटी का वक्त हो गया था, भाभी बोली- अगर छुट्टी मिलती हो तो रुक जाओ।
सच कहूँ तो दिल तो मेरा भी नहीं था जाने का। मैंने छुट्टी ना मिलने की बात कह कर जाने की तैयारी की तो कुछ देर में नीलिमा मेरे पास कमरे में आई और थोड़े दबे से स्वर में मुझे रुकने के लिए कहने लगी। मेरा तो जैसे दिल उछल कर बाहर गिरने को हो गया।
मैंने अब बिल्कुल भी देर नहीं की और झट से अपने बॉस को फोन करके छुट्टी ले ली। पर मैंने बताया किसी को भी नहीं कि मैंने छुट्टी ले ली है।
फ्री होने के बाद हम तीनों कमरे में बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा के पति की बातें चल निकली। पिया से बिछोड़े का दर्द नीलिमा की आँखों में नज़र आने लगा था। और फिर बातों ही बातों में पिया से मिलन की तड़प नीलिमा की जुबान पर भी आ गई।
तभी भाभी कुछ देर के लिए बाहर गई तो मैंने नीलिमा को कुरेदते हुए पूछा- नीलिमा... दिन तो चलो काम में निकल जाता होगा पर तुम्हारी रात कैसे कटती होगी?
यह बात आग में घी का काम कर गई और नीलिमा फफक पड़ी और मेरे कंधे से लग कर रोने लगी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके आँसू पौंछे।उसके गोरे गोरे और चिकने गालों पर हाथ फेरते फेरते मेरी उंगली उसके होंठों को छूने लगी। नीलिमा की आँखें बंद हो गई थी। मैंने भी मौका देखते हुए अपनी साँसें उसकी साँसों में घोलनी शुरू कर दी और उसके बिल्कुल नजदीक आ गया। इतना नजदीक कि मेरे होंठों और उसको होंठों के बीच की दूरी लगभग खत्म हो गई। अब अपने आप को रोकना मेरे लिए मुश्किल था और मैंने धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया। होंठ मिलते ही उसने आँखें खोली और दूर होने की कोशिश की पर तब तक मेरे होंठों ने उसके होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी थी।
यह एक छोटा सा 'चुम्बन' दिल के अरमानों को भड़काने के लिए काफी था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
"नहीं राज... दीदी आ जायेगी और फिर यह ठीक नहीं है।" यह कह कर नीलिमा मेरे पास से उठ कर एक तरफ खड़ी हो गई।
मैं भी उठा और नीलिमा के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा। उसने छुटने का हल्का सा प्रयास किया। मैंने मेरे होंठ उसकी गर्दन पर रख दिए तो वो सिहर उठी। अब मैंने उसको कस कर अपनी बाहों में भर लिया था और उसकी गर्दन और कान की लटकन पर अपने होंठों से गर्मी दे रहा था। फिर मैंने उसको घुमा कर दीवार के सहारे खड़ा किया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उसके रसीले होंठों का रसपान करते हुए मैं सब कुछ भूल गया। उसका मक्खन जैसा मुलायम बदन अब मेरी बाहों में था।
होंठों का रसपान करते करते मेरे हाथ उसकी चूचियों का मर्दन करने लगे। नीलिमा अब गर्म हो गई थी। होती भी क्यों ना आखिर इतने समय के बाद किसी मर्द का हाथ उसके बदन पर था।
तभी कुछ खटपट हुई तो हम दोनों वासना के भंवर से बाहर आये। तभी भाभी अंदर आई। भाभी ने शायद हमें देख लिया था इसीलिए उसने कुछ खटपट की थी।
नीलिमा अब उठ कर चली गई थी। आप समझ सकते है कि वो कहाँ गई होगी। जी बिल्कुल सही, वो बाथरूम में घुस गई थी शायद अपनी आग उंगली से ठण्डी करने।
नीलिमा के जाने के कुछ देर बाद भाभी ने मेरे और नीलिमा के बीच चल रही चूमाचाटी के बारे में पूछा तो एक बार तो मैं घबरा गया पर फिर हिम्मत करके बोला– भाभी... उसको मेरी जरुरत है।
"वो तो ठीक है पर पति के होते दूसरे से सम्बन्ध, अपना समाज इसकी इजाजत नहीं देता देवर जी !"
"पर पति है कहाँ.. ? यह बेचारी पिछले एक साल से तड़प रही है... क्या सुख दिया पति ने इसको?"
और फिर भाभी और मेरे बीच एक बहस सी छिड़ गई। जिसमे जीत मेरी ही हुई। काफी मिन्नतों के बाद भाभी मेरी मदद करने को राजी हुई।
भाभी ने मुझे दोपहर तक इन्तजार करने को कहा। पर मैं इन्तजार नहीं कर पा रहा था। तभी नीलिमा कमरे में आ गई तो भाभी ने मेरी तरफ आँख मारते हुए कहा नीलिमा से कहा– नीलिमाम मैं जरा अपनी सहेली संध्या के घर जा रही हूँ, एक घंटे तक आ जाऊँगी।"
फिर मुझे देखते हुए कहा– राज... नीलिमा घर पर अकेली है, प्लीज़ तुम थोड़ा रुक जाना, मैं बस एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैंने हामी भर दी तो भाभी करीब दस मिनट के बाद तैयार होकर अपनी सहेली के घर चली गई।
भाभी के जाने के दो मिनट के बाद नीलिमा कमरे में आई तो मैंने हाथ पकड़ कर नीलिमा को अपनी तरफ खींच लिया।
"कोई आ जाएगा राज... और अगर कोई आ गया तो बहुत बदनामी होगी... प्लीज़ मत करो ऐसा !"
मैंने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। मैंने उसको अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। थोड़ा से विरोध के बाद नीलिमा भी सहयोग करने लगी। फिर तो हम दोनों मस्त होकर एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और बदन को सहलाने लगे।
मैंने अब नीलिमा को उठाया और बेडरूम में ले गया, उसको बिस्तर पर लेटा कर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जब सिर्फ अंडरवियर रह गया तो मैं नीलिमा के पास जाकर बैठ गया और उसके कपड़े उतारने लगा। नीलिमा ने शर्म के मारे आँखे बंद कर रखी थी। मैंने उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए तो नीचे ब्रा में कसी उसकी चूचियाँ जैसे ब्रा को फाड़ कर बाहर आने को बेचैन थी। वो भी पूरी तन चुकी थी जिस कारण ब्रा चूचियाँ पर टाईट हो गई थी।
मैंने नीलिमा को बिस्तर से नीचे खड़ा किया और फिर उसके सारे कपड़े उतार दिए। जब ब्रा से चूचियाँ निकाली तो मेरा लण्ड फटने को हो गया। मैंने इतनी मस्त चूचियाँ पहली बार देखी थी। एकदम ऊपर को तनी हुई, चुचूक बिल्कुल कड़क खड़े हुए। देखते ही मैं उन पर टूट पड़ा और हाथों में लेकर उनका मर्दन करने लगा।
फिर जैसे ही मैंने उसके निप्पल को अपने मुँह में लिया तो नीलिमा सीत्कार उठी। मैंने चूची को चूसते-चूसते एक हाथ को उसकी चूत पर रखा तो देखा नीलिमा बिल्कुल पानी पानी हो रही थी। शायद वो अति-उत्तेजना में झड़ गई थी।
कुछ देर चूचियों का रसपान करने के बाद मैंने नीलिमा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी टांगों के बीच बैठ कर उसकी गुलाबी और रस से सराबोर लबों वाली चूत पर अपने होंठ रख दिए। नीलिमा की चूत का स्वाद सचमुच लाजवाब था। मैं जीभ को गोल गोल घुमा कर नीलिमा की चूत चाटने लगा। नीलिमा की सीत्कार निकलने लगी थी। मैं अपने हाथों से उसकी चूचियाँ मसल रहा था और जीभ से उसकी चूत चाट रहा था, नीलिमा मेरा सर पकड़ पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी। वो अब पूरी गर्म हो चुकी थी।
तभी मुझे नीलिमा का हाथ अपने लण्ड पर महसूस हुआ। वो बहुत बेचैनी के साथ मेरे लण्ड को ढूँढ रही थी। मैंने अपना लण्ड निकल कर नीलिमा के सामने कर दिया। लण्ड को देखते ही नीलिमा के मुँह से निकला– हाय राम... इतना मोटा !
और अगले ही पल उसने मेरे लण्ड को अपने होंठों के बीच मुँह में कैद कर लिया और मस्त होकर चूसने लगी, बिल्कुल वैसे जैसे कोई बच्चा आइसक्रीम के पिंघल जाने के डर से जल्दी जल्दी चूसता है। लण्ड बिल्कुल कड़क हो चुका था।
"राज, अब और इन्तजार मत करवाओ... नहीं तो मर जाऊँगी !"
मैं भी अब और रुकना नहीं चाहता था तो बस टिका दिया अपना लण्ड नीलिमा की चूत के छेद पर। लण्ड की गर्मी चूत पर मिलते ही नीलिमा ने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस दी। मैंने भी दबाव बनाते हुए अपना लण्ड नीलिमा की चूत में घुसाना शुरू कर दिया। नीलिमा की चूत बहुत कसी थी। मेरा मोटा सुपारा उसकी चूत के मुहाने पर ही जैसे फंस सा गया था। जब दबाव के साथ लण्ड अंदर नहीं घुसा तो मैंने थोड़ा सा ऊपर को उचक कर एक जोरदार धक्का लगाया और मेरे लण्ड का सुपाड़ा नीलिमा की चूत में घुस गया।
सुपाड़ा अंदर घुसते ही नीलिमा चीख उठी, उसकी चूत बहुत तंग थी, उसकी आँखों से आँसू बह निकले थे।
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उसकी चूची को सहलाने लगा और निप्पल को उँगलियों में पकड़ कर मसलने लगा। मैंने एक बार फिर अपने चूतड़ ऊपर की तरफ उचकाए और फिर से एक जोरदार धक्का नीलिमा की चूत पर लगा दिया। मेरा मोटा लण्ड उसकी चूत को लगभग चीरता हुआ करीब दो इंच तक अंदर घुस गया। मैंने रुकना उचित नहीं समझा और फिर ताबड़तोड़ दो-तीन धक्के एक साथ लगा दिए। लण्ड आधे से ज्यादा नीलिमा की चूत के अंदर था।
नीलिमा चीख उठी- मर गईईईईईईईई....फट गयीई मेरी तो...!!
मैं नीलिमा की एक चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरी को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगा। वो दर्द से छटपटा रही थी। मैं कुछ देर ऐसे ही पड़ा रहा तो नीलिमा भी शांत हो गई और फिर हल्के हल्के अपनी गाण्ड उछालने लगी। सिग्नल मिलते ही मैंने भी दुबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए। धीरे धीरे मैंने पूरा लण्ड नीलिमा की चूत में डाल दिया और अंदर-बाहर करने लगा। लण्ड पूरा टाईट जा रहा था चूत में। सच में बहुत कसी हुई चूत थी नीलिमा की।
थोड़ी देर के बाद लण्ड ने चूत में अपनी जगह बन ली और नीलिमा की चूत ने भी ढेर सारा पानी छोड़ दिया तो लण्ड आराम से चूत में अंदर-बाहर होने लगा। नीलिमा की मस्ती भरी आहें अब कमरे के माहौल को मादक बना रही थी। अब तो नीलिमा गाण्ड उठा उठा कर लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी। करीब दस मिनट की चुदाई के बाद नीलिमा झड़ गई।
मैंने अब नीलिमा को घोड़ी बनाया और पीछे से लण्ड उसकी चूत में डाल दिया और जोरदार धक्कों के साथ उसकी चुदाई करने लगा। करीब आधे घंटे तक चुदाई चलती रही और फिर मेरा लण्ड भी अपने रस से नीलिमा की चूत को सराबोर करने को बेचैन हो उठा। मैंने नीलिमा के कूल्हों को कस कर पकड़ा और पूरी गति के साथ चुदाई करने लगा। कुछ ही धक्कों के बाद मेरा वीर्य नीलिमा की चूत को भरने लगा। वीर्य की गर्मी मिलते ही वो फ़िर झड़ गई। वीर्य अब नीलिमा की चूत से बाहर आने लगा था।
हम दोनों निढाल होकर लेट गए। दोनों ही पसीने से तरबतर थे। नीलिमा मुझ से लिपटी हुई थी। उसने मुझे ऐसे जकड़ रखा था जैसे मुझे कभी भी अपने से अलग ना करना चाहती हो।
नीलिमा ने मुझे बताया कि उसके पति संजय के इटली में होने को देखते हुए उसके घर वालों ने उसकी शादी संजय से की थी पर संजय बस एक महीना ही उसके पास रहा और फिर इटली यह कह कर चला गया कि कुछ ही दिन में मुझे वह बुला लेगा। बस तभी से वो पिया मिलना की आस लगाए संजय का इन्तजार कर रही है।
मैंने उसे सांत्वना दी और शाहरुख खान का डायलॉग चिपका दिया- "मैं हूँ ना...!"
चुदाई के बाद हम दोनों एक साथ बाथरूम में गए और अपने आप को साफ़ किया। तभी मेरे मोबाइल पर भाभी का फोन आया।
भाभी ने पूछा– कुछ किया या नहीं?
मैंने भाभी को फतह की जानकारी दे दी। भाभी बहुत खुश हुई। मैंने भाभी को कुछ देर और ना आने को कहा तो उसने मुझे बताया कि वो शाम को आएगी तब तक मज़े करो।
बस फिर क्या था मैंने नीलिमा को पकड़ कर फिर से बिस्तर पर डाल लिया और फिर तो जब तक भाभी का फोन नहीं आया, मैंने और नीलिमा ने तीन बार चुदाई के मज़े लिए।
फिर रात को भी मैं वहीं रुका और सारी रात भाभी की मेहरबानी से मैं और नीलिमा मस्ती के रस से सराबोर रहे, पूरी रात चुदाई-कार्यक्रम में गुज़र गई। सुबह तक नीलिमा की चूत सूज कर पावरोटी हो चुकी थी।
जब तक बाकी परिवार वाले आएँ, मैं ड्यूटी के बाद भाभी के मायके में चला जाता और भाभी की मेहरबानी से नीलिमा जैसी अप्सरा के साथ मस्ती करता।परिवार वालों के आ जाने के बाद भाभी ने मेरा रहने का प्रबन्ध अपने मायके में ही करवा दिया और फिर तो जब भी मौका मिलता मैं और नीलिमा मस्ती के सागर में डुबकियाँ लगाने से नहीं चूकते थे।
आखिर कमरा लेने के बाद जिन्दगी अपनी गति से चलने लगी। जैसे कि आपको पता ही है कि दिल्ली में तो मेरे मज़े थे। मस्त चूत चोदने को मिल रही थी। मज़ा ही मज़ा था। पर जब से करनाल आया था चूत के दर्शन ही नहीं हुए थे। एक बार मेरे एक दोस्त चूत का इंतजाम किया भी पर वो मुझे पसंद नहीं आई क्योंकि रंडी चोदना मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं। अपनी तो सोच है कि शिकार करके खाने में मज़ा ही कुछ और है।
ऐसे ही एक महीने से ज्यादा गुज़र गया। अब मुझ से रहा नहीं जा रहा था और मेरी आँखें अब सिर्फ और सिर्फ चूत की तलाश में रहती। तभी मेरी भाभी अपने मायके में आई तो उसने मुझे भी बुला लिया। मैं जाना तो नहीं चाहता था पर फिर जब उसने ज्यादा जिद की तो मैं शाम को चला गया।
मैंने जाकर घण्टी बजाई तो उस क़यामत ने दरवाज़ा खोला जिसका नाम नीलिमा है। उसको देखा तो मैं देखता ही रह गया। नीलिमा ने मुझे दो बार अंदर आने को कहा पर मैं तो जैसे किसी जादू में बंध गया था बस एकटक उसी को देख रहा था। उसकी मोहक हँसी से मैं जैसे स्वपन से बाहर आया। वो मेरी तरफ देख कर हँस रही थी। मैं झेंप गया। मेरी भी हँसी छूट गई।
मैं पहले भी भाभी के मायके आया था पर मैंने इस क़यामत को पहले कभी नहीं देखा था। वो बिल्कुल अनजान थी मेरे लिए।
वो मुझे बैठा कर अंदर चली गई और मैं बैठा सोचता रहा कि आखिर यह है कौन?
तभी भाभी और उसकी मम्मी आई और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। कुछ देर बाद वो चाय नाश्ता लेकर कर दुबारा आई। जैसे ही मेरी उससे नज़र मिली मेरी हँसी छूट गई तो जवाब में वो भी हल्के से मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद मौका मिलने पर मैंने उसके बारे में भाभी से पूछा तो उसने बताया कि वो उसके चाचा के लड़के की पत्नी है। मैंने तारीफ की और बात आगे चली तो उसने बताया कि वो तनहा है क्योंकि उसका पति करीब एक साल से इटली गया हुआ है और वही काम करता है।
करनाल आने के बाद पहली बार किसी के लिए दिल की धड़कनें तेज हुई थी। भाभी ने मुझे रात को अपने घर पर ही रोक लिया। रात को खाना खाने के बाद सब लोग बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा भी हमारे पास आ कर बैठ गई। फिर जो हँसी मजाक शुरू हुआ तो समय का पता ही नहीं लगा। नीलिमा की खिलखिलाती हँसी हर बार मेरे दिल के तारों को झंझोड़ देती। मन में बार बार उसके पति के लिए गाली निकल रही थी कि इतनी खूबसूरत बीवी को छोड़ कर वो इटली क्या माँ चुदवाने गया है?
जैसे मैं नीलिमा की तरफ आकर्षित हो रहा था तो मुझे वो भी अपनी तरफ आकर्षित होती महसूस हुई क्योंकि अब हमारी नजरें एक दूसरे से बार बार टकरा रही थी, यह मेरे लिए शुभ संकेत था।
रात को बातें करते करते कब सो गए समय का पता ही नहीं चला। सुबह नीलिमा ने ही गर्मागर्म चाय के साथ गुड मोर्निंग बोला। जैसे ही मेरी नज़र नीलिमा से मिली तो उसने भी एक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा। दिल की तड़प अब इतनी बढ़ गई थी कि दिल कर रहा था कि अभी बिस्तर पर खींच लूँ और चोद डालूँ पर अभी आम कच्चा था।
चाय देकर नीलिमा चली गई और मैं दरवाजे की तरफ देखता ही रह गया। जब वो जा रही थी तो मेरी नज़र उसके मटकते कूल्हों और बलखाती कमर से हट ही नहीं पाई।
करीब आधे घंटे के बाद नीलिमा एक बार फिर मेरे कमरे में आई और साफ़ तौलिया देकर बोली- नहा लो, नाश्ता तैयार है।
जब वो कह कर जाने लगी तो मैंने थोड़ा आगे बढ़ने की सोची और नीलिमा की तारीफ करते हुए कह ही दिया- नीलिमा.... तुम बहुत खूबसूरत हो !
नीलिमा एकदम से मेरी तरफ घूमी और अवाक् सी मेरी तरफ देखने लगी और फिर बिना कुछ कहे ही कमरे से चली गई। मैं थोड़ा डर गया पर फिर सोचा कि कोई भी औरत अपनी तारीफ से कभी नाराज नहीं हो सकती।
मैं भी नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और कुछ देर बाद तैयार होकर बाहर आया तो भाभी अपने मम्मी पापा के साथ नाश्ते की मेज पर मेरा इन्तजार कर रही थी। नीलिमा सबको नाश्ता परोस रही थी। मैंने नाश्ते की तारीफ की तो भाभी ने बताया कि नीलिमा ने बनाया है तो मैंने तारीफ में एक दो कशीदे और पढ़ दिए। हर निवाले के साथ वाह वाह किया तो नीलिमा के चेहरे पर भी एक मुस्कराहट तैर गई।
नाश्ता करने के बाद भाभी के मम्मी-पापा चले गए, उनको किसी रिश्तेदारी में जाना था। भाभी को भी उन्होंने इसीलिए बुलाया था ताकि नीलिमा अकेली ना रहे। नीलिमा थी तो भाभी के चाचा के बेटे की बहू पर क्योंकि भाभी के चाचा-चाची भी उसी रिश्तेदारी में गए हुए थे जिसमे भाभी के मम्मी-पापा जा रहे थे तो नीलिमा भाभी के घर पर ही रह रही थी।
भाभी के मम्मी-पापा के जाने के बाद घर में सिर्फ भाभी, नीलिमा और मैं ही रह गए थे। मेरी भी ड्यूटी का वक्त हो गया था, भाभी बोली- अगर छुट्टी मिलती हो तो रुक जाओ।
सच कहूँ तो दिल तो मेरा भी नहीं था जाने का। मैंने छुट्टी ना मिलने की बात कह कर जाने की तैयारी की तो कुछ देर में नीलिमा मेरे पास कमरे में आई और थोड़े दबे से स्वर में मुझे रुकने के लिए कहने लगी। मेरा तो जैसे दिल उछल कर बाहर गिरने को हो गया।
मैंने अब बिल्कुल भी देर नहीं की और झट से अपने बॉस को फोन करके छुट्टी ले ली। पर मैंने बताया किसी को भी नहीं कि मैंने छुट्टी ले ली है।
फ्री होने के बाद हम तीनों कमरे में बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा के पति की बातें चल निकली। पिया से बिछोड़े का दर्द नीलिमा की आँखों में नज़र आने लगा था। और फिर बातों ही बातों में पिया से मिलन की तड़प नीलिमा की जुबान पर भी आ गई।
तभी भाभी कुछ देर के लिए बाहर गई तो मैंने नीलिमा को कुरेदते हुए पूछा- नीलिमा... दिन तो चलो काम में निकल जाता होगा पर तुम्हारी रात कैसे कटती होगी?
यह बात आग में घी का काम कर गई और नीलिमा फफक पड़ी और मेरे कंधे से लग कर रोने लगी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके आँसू पौंछे।उसके गोरे गोरे और चिकने गालों पर हाथ फेरते फेरते मेरी उंगली उसके होंठों को छूने लगी। नीलिमा की आँखें बंद हो गई थी। मैंने भी मौका देखते हुए अपनी साँसें उसकी साँसों में घोलनी शुरू कर दी और उसके बिल्कुल नजदीक आ गया। इतना नजदीक कि मेरे होंठों और उसको होंठों के बीच की दूरी लगभग खत्म हो गई। अब अपने आप को रोकना मेरे लिए मुश्किल था और मैंने धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया। होंठ मिलते ही उसने आँखें खोली और दूर होने की कोशिश की पर तब तक मेरे होंठों ने उसके होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी थी।
यह एक छोटा सा 'चुम्बन' दिल के अरमानों को भड़काने के लिए काफी था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
"नहीं राज... दीदी आ जायेगी और फिर यह ठीक नहीं है।" यह कह कर नीलिमा मेरे पास से उठ कर एक तरफ खड़ी हो गई।
मैं भी उठा और नीलिमा के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा। उसने छुटने का हल्का सा प्रयास किया। मैंने मेरे होंठ उसकी गर्दन पर रख दिए तो वो सिहर उठी। अब मैंने उसको कस कर अपनी बाहों में भर लिया था और उसकी गर्दन और कान की लटकन पर अपने होंठों से गर्मी दे रहा था। फिर मैंने उसको घुमा कर दीवार के सहारे खड़ा किया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उसके रसीले होंठों का रसपान करते हुए मैं सब कुछ भूल गया। उसका मक्खन जैसा मुलायम बदन अब मेरी बाहों में था।
होंठों का रसपान करते करते मेरे हाथ उसकी चूचियों का मर्दन करने लगे। नीलिमा अब गर्म हो गई थी। होती भी क्यों ना आखिर इतने समय के बाद किसी मर्द का हाथ उसके बदन पर था।
तभी कुछ खटपट हुई तो हम दोनों वासना के भंवर से बाहर आये। तभी भाभी अंदर आई। भाभी ने शायद हमें देख लिया था इसीलिए उसने कुछ खटपट की थी।
नीलिमा अब उठ कर चली गई थी। आप समझ सकते है कि वो कहाँ गई होगी। जी बिल्कुल सही, वो बाथरूम में घुस गई थी शायद अपनी आग उंगली से ठण्डी करने।
नीलिमा के जाने के कुछ देर बाद भाभी ने मेरे और नीलिमा के बीच चल रही चूमाचाटी के बारे में पूछा तो एक बार तो मैं घबरा गया पर फिर हिम्मत करके बोला– भाभी... उसको मेरी जरुरत है।
"वो तो ठीक है पर पति के होते दूसरे से सम्बन्ध, अपना समाज इसकी इजाजत नहीं देता देवर जी !"
"पर पति है कहाँ.. ? यह बेचारी पिछले एक साल से तड़प रही है... क्या सुख दिया पति ने इसको?"
और फिर भाभी और मेरे बीच एक बहस सी छिड़ गई। जिसमे जीत मेरी ही हुई। काफी मिन्नतों के बाद भाभी मेरी मदद करने को राजी हुई।
भाभी ने मुझे दोपहर तक इन्तजार करने को कहा। पर मैं इन्तजार नहीं कर पा रहा था। तभी नीलिमा कमरे में आ गई तो भाभी ने मेरी तरफ आँख मारते हुए कहा नीलिमा से कहा– नीलिमाम मैं जरा अपनी सहेली संध्या के घर जा रही हूँ, एक घंटे तक आ जाऊँगी।"
फिर मुझे देखते हुए कहा– राज... नीलिमा घर पर अकेली है, प्लीज़ तुम थोड़ा रुक जाना, मैं बस एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैंने हामी भर दी तो भाभी करीब दस मिनट के बाद तैयार होकर अपनी सहेली के घर चली गई।
भाभी के जाने के दो मिनट के बाद नीलिमा कमरे में आई तो मैंने हाथ पकड़ कर नीलिमा को अपनी तरफ खींच लिया।
"कोई आ जाएगा राज... और अगर कोई आ गया तो बहुत बदनामी होगी... प्लीज़ मत करो ऐसा !"
मैंने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। मैंने उसको अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। थोड़ा से विरोध के बाद नीलिमा भी सहयोग करने लगी। फिर तो हम दोनों मस्त होकर एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और बदन को सहलाने लगे।
मैंने अब नीलिमा को उठाया और बेडरूम में ले गया, उसको बिस्तर पर लेटा कर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जब सिर्फ अंडरवियर रह गया तो मैं नीलिमा के पास जाकर बैठ गया और उसके कपड़े उतारने लगा। नीलिमा ने शर्म के मारे आँखे बंद कर रखी थी। मैंने उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए तो नीचे ब्रा में कसी उसकी चूचियाँ जैसे ब्रा को फाड़ कर बाहर आने को बेचैन थी। वो भी पूरी तन चुकी थी जिस कारण ब्रा चूचियाँ पर टाईट हो गई थी।
मैंने नीलिमा को बिस्तर से नीचे खड़ा किया और फिर उसके सारे कपड़े उतार दिए। जब ब्रा से चूचियाँ निकाली तो मेरा लण्ड फटने को हो गया। मैंने इतनी मस्त चूचियाँ पहली बार देखी थी। एकदम ऊपर को तनी हुई, चुचूक बिल्कुल कड़क खड़े हुए। देखते ही मैं उन पर टूट पड़ा और हाथों में लेकर उनका मर्दन करने लगा।
फिर जैसे ही मैंने उसके निप्पल को अपने मुँह में लिया तो नीलिमा सीत्कार उठी। मैंने चूची को चूसते-चूसते एक हाथ को उसकी चूत पर रखा तो देखा नीलिमा बिल्कुल पानी पानी हो रही थी। शायद वो अति-उत्तेजना में झड़ गई थी।
कुछ देर चूचियों का रसपान करने के बाद मैंने नीलिमा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी टांगों के बीच बैठ कर उसकी गुलाबी और रस से सराबोर लबों वाली चूत पर अपने होंठ रख दिए। नीलिमा की चूत का स्वाद सचमुच लाजवाब था। मैं जीभ को गोल गोल घुमा कर नीलिमा की चूत चाटने लगा। नीलिमा की सीत्कार निकलने लगी थी। मैं अपने हाथों से उसकी चूचियाँ मसल रहा था और जीभ से उसकी चूत चाट रहा था, नीलिमा मेरा सर पकड़ पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी। वो अब पूरी गर्म हो चुकी थी।
तभी मुझे नीलिमा का हाथ अपने लण्ड पर महसूस हुआ। वो बहुत बेचैनी के साथ मेरे लण्ड को ढूँढ रही थी। मैंने अपना लण्ड निकल कर नीलिमा के सामने कर दिया। लण्ड को देखते ही नीलिमा के मुँह से निकला– हाय राम... इतना मोटा !
और अगले ही पल उसने मेरे लण्ड को अपने होंठों के बीच मुँह में कैद कर लिया और मस्त होकर चूसने लगी, बिल्कुल वैसे जैसे कोई बच्चा आइसक्रीम के पिंघल जाने के डर से जल्दी जल्दी चूसता है। लण्ड बिल्कुल कड़क हो चुका था।
"राज, अब और इन्तजार मत करवाओ... नहीं तो मर जाऊँगी !"
मैं भी अब और रुकना नहीं चाहता था तो बस टिका दिया अपना लण्ड नीलिमा की चूत के छेद पर। लण्ड की गर्मी चूत पर मिलते ही नीलिमा ने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस दी। मैंने भी दबाव बनाते हुए अपना लण्ड नीलिमा की चूत में घुसाना शुरू कर दिया। नीलिमा की चूत बहुत कसी थी। मेरा मोटा सुपारा उसकी चूत के मुहाने पर ही जैसे फंस सा गया था। जब दबाव के साथ लण्ड अंदर नहीं घुसा तो मैंने थोड़ा सा ऊपर को उचक कर एक जोरदार धक्का लगाया और मेरे लण्ड का सुपाड़ा नीलिमा की चूत में घुस गया।
सुपाड़ा अंदर घुसते ही नीलिमा चीख उठी, उसकी चूत बहुत तंग थी, उसकी आँखों से आँसू बह निकले थे।
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उसकी चूची को सहलाने लगा और निप्पल को उँगलियों में पकड़ कर मसलने लगा। मैंने एक बार फिर अपने चूतड़ ऊपर की तरफ उचकाए और फिर से एक जोरदार धक्का नीलिमा की चूत पर लगा दिया। मेरा मोटा लण्ड उसकी चूत को लगभग चीरता हुआ करीब दो इंच तक अंदर घुस गया। मैंने रुकना उचित नहीं समझा और फिर ताबड़तोड़ दो-तीन धक्के एक साथ लगा दिए। लण्ड आधे से ज्यादा नीलिमा की चूत के अंदर था।
नीलिमा चीख उठी- मर गईईईईईईईई....फट गयीई मेरी तो...!!
मैं नीलिमा की एक चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरी को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगा। वो दर्द से छटपटा रही थी। मैं कुछ देर ऐसे ही पड़ा रहा तो नीलिमा भी शांत हो गई और फिर हल्के हल्के अपनी गाण्ड उछालने लगी। सिग्नल मिलते ही मैंने भी दुबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए। धीरे धीरे मैंने पूरा लण्ड नीलिमा की चूत में डाल दिया और अंदर-बाहर करने लगा। लण्ड पूरा टाईट जा रहा था चूत में। सच में बहुत कसी हुई चूत थी नीलिमा की।
थोड़ी देर के बाद लण्ड ने चूत में अपनी जगह बन ली और नीलिमा की चूत ने भी ढेर सारा पानी छोड़ दिया तो लण्ड आराम से चूत में अंदर-बाहर होने लगा। नीलिमा की मस्ती भरी आहें अब कमरे के माहौल को मादक बना रही थी। अब तो नीलिमा गाण्ड उठा उठा कर लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी। करीब दस मिनट की चुदाई के बाद नीलिमा झड़ गई।
मैंने अब नीलिमा को घोड़ी बनाया और पीछे से लण्ड उसकी चूत में डाल दिया और जोरदार धक्कों के साथ उसकी चुदाई करने लगा। करीब आधे घंटे तक चुदाई चलती रही और फिर मेरा लण्ड भी अपने रस से नीलिमा की चूत को सराबोर करने को बेचैन हो उठा। मैंने नीलिमा के कूल्हों को कस कर पकड़ा और पूरी गति के साथ चुदाई करने लगा। कुछ ही धक्कों के बाद मेरा वीर्य नीलिमा की चूत को भरने लगा। वीर्य की गर्मी मिलते ही वो फ़िर झड़ गई। वीर्य अब नीलिमा की चूत से बाहर आने लगा था।
हम दोनों निढाल होकर लेट गए। दोनों ही पसीने से तरबतर थे। नीलिमा मुझ से लिपटी हुई थी। उसने मुझे ऐसे जकड़ रखा था जैसे मुझे कभी भी अपने से अलग ना करना चाहती हो।
नीलिमा ने मुझे बताया कि उसके पति संजय के इटली में होने को देखते हुए उसके घर वालों ने उसकी शादी संजय से की थी पर संजय बस एक महीना ही उसके पास रहा और फिर इटली यह कह कर चला गया कि कुछ ही दिन में मुझे वह बुला लेगा। बस तभी से वो पिया मिलना की आस लगाए संजय का इन्तजार कर रही है।
मैंने उसे सांत्वना दी और शाहरुख खान का डायलॉग चिपका दिया- "मैं हूँ ना...!"
चुदाई के बाद हम दोनों एक साथ बाथरूम में गए और अपने आप को साफ़ किया। तभी मेरे मोबाइल पर भाभी का फोन आया।
भाभी ने पूछा– कुछ किया या नहीं?
मैंने भाभी को फतह की जानकारी दे दी। भाभी बहुत खुश हुई। मैंने भाभी को कुछ देर और ना आने को कहा तो उसने मुझे बताया कि वो शाम को आएगी तब तक मज़े करो।
बस फिर क्या था मैंने नीलिमा को पकड़ कर फिर से बिस्तर पर डाल लिया और फिर तो जब तक भाभी का फोन नहीं आया, मैंने और नीलिमा ने तीन बार चुदाई के मज़े लिए।
फिर रात को भी मैं वहीं रुका और सारी रात भाभी की मेहरबानी से मैं और नीलिमा मस्ती के रस से सराबोर रहे, पूरी रात चुदाई-कार्यक्रम में गुज़र गई। सुबह तक नीलिमा की चूत सूज कर पावरोटी हो चुकी थी।
जब तक बाकी परिवार वाले आएँ, मैं ड्यूटी के बाद भाभी के मायके में चला जाता और भाभी की मेहरबानी से नीलिमा जैसी अप्सरा के साथ मस्ती करता।परिवार वालों के आ जाने के बाद भाभी ने मेरा रहने का प्रबन्ध अपने मायके में ही करवा दिया और फिर तो जब भी मौका मिलता मैं और नीलिमा मस्ती के सागर में डुबकियाँ लगाने से नहीं चूकते थे।
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